कुतुब मीनार के बारे में 10 रोचक तथ्य
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कुतुब मीनार के बारे मे 10 रोचक तथ्य – 10 interesting facts about Qutub Minar

कुतुब मीनार भारत में दक्षिण दिल्ली शहर के महरौली भाग में स्थित, ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊँची मीनार है. इसकी ऊँचाई 72.5 मीटर (237.86 फीट) और व्यास 14.3 मीटर है, (कुतुब मीनार के बारे मे 10 रोचक तथ्य) जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फीट) हो जाता है. इसमें 379 सीढियाँ हैं.

कुतुब मीनार के चारों ओर बने अहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, जिनमें से अनेक इसके निर्माण काल सन 1193 या पूर्व के हैं. यह परिसर युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है. कुतुबमीनार भारत की राजधानी दिल्‍ली में स्थित है. यह विश्‍व विरासत स्‍थलों में भी शामिल है. कुतुब मीनार का निर्माण गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1199 ई० में शुरू कराया था.

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यह मीनार निश्चित रूप से भारत की संपत्ति में से एक है, न केवल यह 16 वीं शताब्दी के भूकंप से नुकसान से बची है, बल्कि 14 वीं शताब्दी में दो बार बिजली गिरने से भी बच गई है।

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यह ई-टिकट की सुविधा प्रदान करने वाला पहला भारतीय स्मारक भी है। इस शानदार मीनार को देखने के लिए प्रवेश शुल्क 10 रुपये है।

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कुतुब मीनार (Qutub Minar) को दिल्ली के तीन शासकों (कुतुब-उद-दीन ऐबक ने अपने उत्तराधिकारी, शम्स-उद-दीन इल्तुतमिशो ने तीन मंजिला और तीन मंजिला बनाया और अंत में फिरोज शाह तुगलक ने बनाया था, जो तीन मंजिला था)। पांचवें मंजिला) और अंत में 14 वीं शताब्दी में पूरा हुआ, शायद इसीलिए यह थोड़ा झुकता है!

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कुतुब मीनार के परिसर में एक लौह स्‍तंभ है इस लौह स्‍तंभ की खासियत यह है कि यह लगभग 2000 वर्ष पुराना होने के बाद भी इस स्‍तंभ में अभी तक जंग नहीं लगी है.

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कुतुब मीनार परिसर में कुतुब मीनार, कुब्बत-उल-इस्लाम मस्जिद, अलाई मीनार, आली दरवाजा, लौह स्तंभ और इल्तुत्मिश का मकबरा स्थित है.

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इसके बाद में 1368 ई. में मुगल बादशाह फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने इसके ऊपर की दो मंज़िलों को हटाकर इसमें दो नई मंज़िलें और जुड़वा दीं थीं.

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कुतुब मीनार का नाम ख़्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर रखा गया था.

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मीनार के समान ही परिसर में बनी एक मस्जिद जिसे कुव्वत-उल-इस्लाम कहा जाता है। हालांकि खंडहरों में, यह भारत में निर्मित पहली मस्जिद है।

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पाँच मंजिला क़ुतुब मीनार की तीन मंजिले लाल बलुआ पत्थर से एवं अन्य दो मंजिले संगमरमर एवं लाल बलुआ पत्थर से बनाई गयी हैं और प्रत्येक मंजिल के आगे बॉलकनी स्थित है। 

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लेकिन कुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद एवं उत्‍तराधिकारी शमशुद्दीन इल्तुतमिश ने इसका निर्माण कार्य पूरा कराया.

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